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इतिहास के पन्नों में कभी ‘विशाला जाट की ढाणी’ के नाम से जाना जाने वाला पश्चिम भारत के थार रेगिस्तान के दक्षिण पूर्व मुहाने पर बसा एक छोटा सा गाँव, झुंझुनू के ठाकुर शार्दुलसिंहजी के सुपुत्र ठाकुर केसरीसिंहजी को जागीर में मिला जिसे उन्होंने सन 1746 में नया नाम दिया “बिसाऊ”, जो आज एक बहुमूल्य सांस्कृतिक धरोहर और विरासत का धनी क़स्बा हैI सन 1947 में अखंड भारत का भाग्य बदला और ब्रिटिश राज से मुक्ति मिली, खंडित होने के बाद एक अलग और स्वतंत्र भारत की सरंचना हुयी और राजपुताना रियासत जयपुर का हिस्सा बिसाऊ, स्वतंत्र भारत के राजस्थान राज्य के झुंझुनू जिले का एक भाग बना और आज भी हैI समय के साथ साथ जिस तरह भारत का विकास हुआ, बिसाऊ का भी हुआI स्वतंत्रता के बाद विभिन्न केन्द्रीय और राज्य सरकारों ने अपने अपने तरीके से बिसाऊ के विकास में योगदान दियाI लेकिन उससे भी अधिक योगदान रहा बिसाऊ के भामाशाहों का जिन्होंने पेयजल वितरण, विद्युत् वितरण, शिक्षा एवम् चिकित्सा के क्षेत्रों में अतुलनीय सहयोग प्रदान कियाI इनमे सेठ दुर्गादत्त जटिया परिवार, सेठ सूरजमल पोद्दार परिवार (जिन्हें प्यार से बिसाऊ में ‘डाकीड़ा परिवार’ के नाम से जाना जाता है), सेठ श्रीराम रामनिरंजन झुनझुनवाला परिवार, सेठ घनश्यामदास पोद्दार परिवार, सेठ श्री जोरावरमल नाथूराम पोद्दार परिवार, सेठ गोविन्दराम बजाज परिवार, सेठ बोहितराम सिंघानिया परिवार, सेठ श्री रामनारायण बासुदेव बावरी परिवार एवम् सेठ हरदेवदास जगन्नाथराय बावरी परिवार कुछ अग्रणी नाम रहेI सरकारों का योगदान तो जैसा होता रहा है वैसा रहा, लेकिन पिछले 2-3 दशकों में ऐसा लगा कि कस्बे के प्रति भामाशाहों का मोह कुछ भंग हुआ हैI इसका मुख्य कारण बिसाऊ के निवासियों और प्रवासियों की उदासीनता के अतिरिक्त कुछ और प्रतीत नहीं होताI इस मोह को पुनर्जीवित करने और इसे नए रूप में संचारित करने के उद्देश्य से 10-15 मित्रों के एक ऐसे समूह ने, जो बिसाऊ में जन्मे, खेले कूदे और पले बढे, लेकिन उनमे से अधिकतर को आजीविका अर्जन के लिए महानगरों की तरफ पलायन करना पड़ा, एक न्यास का गठन किया जिसका मुख्य उद्देश्य मूल रूप से प्रवासी बिसाऊ नागरिकों को, जो जीविकोपार्जन के लिए अपनी मातृभूमि से दूर रह रहे हैं, अपनी धरा से वापस जोड़ना है तथा उनका अपनी मातृभूमि के लिए प्रेम वापस जागृत करना हैI बिसाऊ के निवासी और प्रवासी बंधुओं ने दिल खोलकर इस देवकार्य में रूचि ली है और अपना यथासंभव सहयोग देना प्रारंभ किया हैI उनका यह प्रयास आज एक विशाल बरगद रुपी आकार लेने की ओर अग्रसर हैI बिसाऊ के लोग जुड़ते जा रहे हैं और कारवां बनता जा रहा हैI अब इसमें कोई संदेह शेष नहीं रहा है कि अपनी मातृभूमि के प्रति उनका ये प्रेम उन्हें बिसाऊ के विकास में सहयोग करने को प्रेरित कर रहा हैI II जय हो बिसाऊ की धरा की II
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